
रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया, अपने सिर तक काट डाले — और शिव खुश भी हुए! लेकिन सिर्फ भक्ति से कुछ नहीं होता, जब मन में घमंड, वासना और सत्ता का नशा हो।
शिव सबके! न धर्म, न जात — बस भक्ति का रास्ता
शिव ने त्रिपुरासुर को मारा, दक्ष का यज्ञ जलाया, भस्मासुर को खुद नष्ट कराया — पर जब बात रावण की आई, तो उन्होंने intervene करना जरूरी नहीं समझा।
क्यों?
क्योंकि शिव अंधभक्तों के रक्षक नहीं।
शिव न्यायप्रिय हैं, ना कि पक्षपाती
भोलेनाथ वो हैं जो भस्मासुर को भी वर देते हैं, लेकिन जब वो सीमा पार करता है, तो खुद उसे खत्म करते हैं। रावण ने माता सीता को अपमानित किया, युद्ध को उकसाया, और जब सब सीमा लांघ दी — तो शिव ने भी मुंह फेर लिया।
“भक्ति में शक्ति होनी चाहिए, पर बुद्धि भी जरूरी है।”
अब आते हैं आज के भक्तों पर…
सावन में दूध की धार, बेलपत्र की लाइन, Instagram पर #Mahadev का कैप्शन — और उम्मीद ये कि भोलेबाबा हर पाप माफ कर देंगे?
न भाई, इतना भी भोला नहीं है महादेव!
“तू शराब छोड़ नहीं पा रहा, और चाहता है शिव प्रसन्न हो जाएं?”
शिव को प्रसन्न करने के लिए दिमाग, दिल और कर्म — तीनों की भक्ति चाहिए। सिर्फ दिखावा, इंस्टा रील्स और डमरू इमोजी से कुछ नहीं होता।
सावन का मतलब है खुद की सफाई — सिर्फ मंदिर की नहीं!
शिव का असली रूप है — वैराग्य, विनम्रता, और विवेक।
सावन का महीना है internally detox करने का, न कि महंगी भस्म लगाने और कैमरे के सामने ट्रिपल बेलपत्र चढ़ाने का।
निष्कर्ष: शिव सब देख रहे हैं… एक्टिंग नहीं चलेगी!
रावण की हार ये साबित करती है कि:
“भक्ति में दम नहीं, तो भस्म होना तय है।”
तो अगर आप सोच रहे हैं कि सावन में दो बेलपत्र से आपका पूरा साल सेट हो जाएगा — तो सावधान!
शिव ‘भोले’ हैं, बेवकूफ नहीं।